आरजू बे दखल है अपनी तो
हर तमन्ना अजल है अपनी तो।
लोग माहिर हैं हक जताने में,
देखादेखी नक़ल है अपनी तो।
ये भी चाहो तो छीन लो हम से,
झोपडी ही महल है अपनी तो।
दर्द को आंसुओं से सींचा है,
सिफऱ् ये ही फसल है अपनी तो।
हम को लिखने का फन नहीं आता,
जि़न्दगी ही गज़़ल है अपनी तो।
-महेश सोनी
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