गुरुवार, 20 अगस्त 2015

मैं तुम्हारी गजल मे

अगर मानते हो तो सारी गजल मे।
तुम्हारा तसव्वुर हमारी गजल में।
कहीं शोख चंचल अदाओं की लडिय़ां,
कहीं उनकी जुल्फें संवारी गजल में।
वो तन्हा अकेला, चिनाबों का पानी,
लरजती वो लहरें, उभारी गजल में।
सुनो न सुनो, फिर भी इतना तो कह दूं,
कहीं कुछ तो है, बेकरारी गजल में।
रकीबों सुनों, गुनगुना तो रहे हो,
संभलकर, छुपी है कटारी गजल में।
हुई खूब जद्दोजहद-नोकझौंकें,
तब उसने कहा, मैं तुम्हारी गजल में।
-महेश सोनी

कोई टिप्पणी नहीं: