शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

मुहब्बत के दुश्मन

गजल
मुहब्बत के दुश्मन खता माफ़ करना। 
तुझे कह दिया बेवफा माफ़ करना। 
सनम से मुखातिब जबीं झुक गई थी, 
मैं काफिर नहीं हूँ, खुदा माफ़ करना। 
बारहा मेरे दर से गुजऱते तो हो तुम, 
जो कह दूँ कभी, मरहबा माफ़ करना। 
सलामत रहे चाहने वाला तेरा, 
न ये मांगनी थी, दुआ माफ़ करना। 
-महेश सोनी

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