शनिवार, 6 दिसंबर 2008

इंतज़ार

दर्द से रोशनी,ग़म को बहार करते हैं।
फूल से दोस्ती,काँटों को प्यार करते हैं।
लोग ऐसे भी हैं गैरों की इख्तियारी में,
जि़न्दगी रहन है, सांसें उधार करते हैं।
उनके खामोश लबों का है नाम मज़बूरी,
जो मेरी बेबसी पे ऐतवार करते हैं।
कोई मौका तो दे हम को भी इंतजारी का,
हम भी वो शख्स हैं जो इंतज़ार करते हैं।
बेव$फाई महेश रस्म है ज़माने की,
और हम हैं कि व$फा बार-बार करते हैं।
-महेश सोनी

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